मामला गोयली चौराहा से महज कुछ दूरी का है। वक्त कोई दोपहर ढाई- पौने तीन का। बगल में जीप, जीप में बैठा एक पुलिस कर्मी, बोलने का लहजा और देखने का अंदाज कोई पुलिस कप्तान से कम नहीं था। दुपहिया वाहन चालकों को पुलिस दो पुलिस कर्मी रोकते और जीप की ओर इशारा कर बोलते साब से मिलो। साब बोले हेलमेट क्यों नहीं, कभी बसों की फोटोग्राफी, आखिर किस मकसद से वहां थे, यह नामालूम। तकरीबन आधा घंटे तक वाहन चालकों को टटोलने के बाद बगल में ही चाय की थड़ी पर चुस्कियों में मशगूल, फिर कुछ फर्लांग की दूरी पर आए और एकाएक रुक गए। सामने से निजी बस आई, पुलिस कर्मी ने उसकी मोबाइल से फोटोग्राफी की और वहां से सदर थाने की ओर चलता बने। यह तो था आधा घंटे का पुलिसिया रुतबे का दृश्य। जीप में बैठे साब के बोलने का सलीका कुछ परे था। समझाइश की बजाय सीधी धमकी। एक तो लोकसभा चुनाव, उपर से गर्मी का दौर और तीसरी पुलिसिया तेवर की मार, बेचारे वाहन चालक क्या करें। कुछ लोग तो पुलिसिया तेवर से जलील होकर वहां से निकल पड़े तो कुछ गिड़गिड़ाए तो हाथ में कागज रूपी चालान थमा आर्थिक मार दे दी।