- नारी सशक्तिकरण और बदलाव का अनूठा उदाहरण है ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान
- महिला शक्ति द्वारा संचालित यह संगठन विश्व के 140 देशों में भारतीय सनातन संस्कृति और योग का दे रहा है संदेश
आबू रोड। भारतीय सनातन संस्कृति, अध्यात्म, योग और जीवन मूल्यों की शिक्षा के लिए समर्पित ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान आज पूरे विश्व में नारी शक्ति और महिला सशक्तिकरण का नायाब उदाहरण बन गया है। संस्थान से जुड़ी नारी शक्ति ने न केवल खुद का जीवन बदला है बल्कि लाखों लोगों के जीवन में बदलाव, उम्मीद और आशा की नई किरण बन गई हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा एकमात्र महिलाओं द्वारा संचालित संगठन है। जिसकी छोटे स्तर से लेकर मुख्य प्रशासिका तक महिलाएं हैं। वर्तमान में 101 वर्षीय राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी मुख्य प्रशासिका हैं।
आज संस्थान में 50 हजार से अधिक ब्रह्माकुमारी बहनों तन-मन-धन के साथ समर्पित होकर ब्रह्माकुमारीज़ में सेवाएं दे रही हैं। संगठन का उद्देश्य है बुराइयों, विकारों, विकृतियों और आसुरीयता से जकड़ चुकी दुनिया को फिर से स्वर्णिम भारत, स्वर्णिम धरा बनाया। इस धरा पर फिर से रामराज्य की परिकल्पना को साकार करना। लक्ष्य बढ़ा है लेकिन उसे पाने की चमक इनके चेहरों पर साफ देखी जा सकती है।  बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और नारी के उत्थान के संकल्प के साथ उसे समाज में खोया सम्मान दिलाने, भारत माता, वंदे मातरम् की गाथा को सही अर्थों में चरितार्थ करने वर्ष 1937 में उस जमाने के हीरे-जवाहरात के प्रसिद्ध व्यापारी दादा लेखराज कृपलानी ने नारी सशक्तिकरण की नींव रखी। नारी उत्थान को लेकर उनका दृढ़ संकल्प ही था कि उन्होंने अपनी सारी जमीन-जायजाद बेचकर एक ट्रस्ट बनाया और उसमें संचालन की जिम्मेदारी नारियों को सौंप दी। इतने बड़े त्याग के बाद भी खुद को कभी आगे नहीं रखा। लोगों में परिवारवाद का संदेश न जाए इसलिए बेटी तक को संचालन समिति में नहीं रखा। वर्ष 1950 में संस्थान का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू बनाया गया। जहां से बहुत ही छोटे स्तर पर विधिवत भारत सहित विश्वभर में सेवाओं की शुरुआत की गई। पहले संगठन का नाम ओम मंडली था। 1950 में बदलकर इसे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय किया गया। उस वक्त मात्र 350 लोग ही इसके समर्पित सदस्य थे।    

दुनिया का एकमात्र और सबसे बड़ा संगठन-
 नारी सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि यहां के भोजनालय में भाई भोजन बनाते हैं और बहनें बैठकर भोजन करती हैं। संगठन की सारी जिम्मेदारियों को बहनें संभालती हैं और भाई उनके सहयोगी के रूप में साथ निभाते हैं। संस्थान में डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, वकील, प्रोफेसर, जज, आईएएस से लेकर सिंगर तक हैं जिन्होंने बाकायदा प्रोफेशनल डिग्री लेने के बाद आध्यात्म की राह अपनाई और आज समर्पित रूप से संस्थान में सेवाएं दे रही हैं।
 
140 देशों में पांच हजार सेवाकेंद्र संचालित-
संस्थान के विश्व के 140 देशों में पांच हजार से अधिक सेवाकेंद्र संचालित हैं। 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित रूप से तन-मन-धन के साथ अपनी सेवाएं दे रही हैं। 20 लाख से अधिक लोग इसके नियमित विद्यार्थी हैं जो संस्थान के नियमित सत्संग मुरली क्लास को अटेंड करते हैं। दो लाख से अधिक ऐसे युवा जुड़े हुए हैं जो बालब्रह्मचारी रहकर संस्थान से जुड़कर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे और सेवा के लिए राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के तहत 20 प्रभागों की स्थापना की है।

योग, नशामुक्ति, यौगिक खेती में किए प्रयोग-
ब्रह्माकुमारीज संस्थान की बहनें न केवल ज्ञान-ध्यान की शिक्षा देती हैं बल्कि बड़े स्तर पर संस्थान द्वारा नशामुक्ति, जैविक-यौगिक खेती, पर्यावरण संरक्षण, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, युवा जागृति, महिला सशक्तिकरण, पौधारोपण जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं। हाल ही में संस्थान की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर अभियान चलाया गया। इसके तहत देशभर में आध्यात्मिक जागृति और देशभक्ति पर केंद्रित 55 हजार कार्यक्रम किए गए।  

संयुक्त राष्ट्र शांति पदक से सम्मानित-
  योग-अध्यात्म की शिक्षा का कही कमाल है कि हाल ही में रुस में ब्रह्माकुमारीज़ की निदेशिका बीके सुधा दीदी को प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार से राष्ट्रपति ने सम्मानित किया गया। वहीं यूएनओ की ओर से ब्रह्माकुमारीज को वर्ष 1981 और वर्ष 1986 में संयुक्त राष्ट्र शांतिदूत पुरस्कार मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि को प्रदान किया गया। वहीं 1987 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति संदेशवाहक पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके साथ ही इसी वर्ष संस्थान को पांच राष्ट्रीय शांति संदेशवाहक पुरस्कार प्रदान किए गए। मार्च 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर बीके शिवानी दीदी को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा था।